शाहजहाँपुर के लाल ने काकोरी ट्रेन में अंग्रेजो का खजाना लूट कर गोरो की नींद हराम कर दी थी।
अमर शहीद को बाबा की ओर से श्रद्धांजलि—
Newsalert9 (कुशीनगर)
जन्म —
22 अक्टूबर 1900 को शाहजहाँपुर में जन्मे अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके पिता का नाम शफ़िक़ुल्लाह खान और माता का नाम मज़रुनिस्सा था। वह एक मुस्लिम पठान परिवार से ताल्लुक रखते थे जो खैबर जनजाति से थे।
काकोरी ट्रेन से खजाना लूट और फांसी–
अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ ने काकोरी ट्रेन डकैती में भाग लिया था, जो 1925 में हुई थी। इस घटना में, उन्होंने और उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटा था। इसके बाद, उन्हें गिरफ्तार किया गया और फ़ैज़ाबाद कारावास में रखा गया। उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को फ़ैज़ाबाद कारावास में फांसी की सजा दी गई थी।
फांसी वाले दिन–
फाँसी वाले दिन सोमवार दिनांक 19 दिसम्बर 1927 को अशफ़ाक़ हमेशा की तरह सुबह उठे, शौच आदि से निवृत्त हो स्नान किया। कुछ देर वज्रासन में बैठ कुरान की आयतों को दोह्रराया और किताब बन्द करके उसे आँखों से चूमा। फिर अपने आप जाकर फाँसी के तख्ते पर खडे हो गये और कहा- “मेरे ये हाथ इन्सानी खून से नहीं रँगे। खुदा के यहाँ मेरा इन्साफ होगा।” फिर अपने आप ही फन्दा गले में डाल लिया।
विरासत–
अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ की विरासत आज भी हम भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्हें उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व, प्रेम, स्पष्ट सोच, अडिग साहस, दृढ़ निश्चय और निष्ठा के लिए याद किया जाता रहेगा।
कविता के माध्यम से शहीद की सोच–
जाऊँगा खाली हाथ मगर, यह दर्द साथ ही जायेगा;
जाने किस दिन हिन्दोस्तान, आजाद वतन कहलायेगा।
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं, फिर आऊँगा-फिर आऊँगा;
ले नया जन्म ऐ भारत माँ! तुझको आजाद कराऊँगा।
जी करता है मैं भी कह दूँ, पर मजहब से बँध जाता हूँ;
मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कह पाता हूँ।
हाँ, खुदा अगर मिल गया कहीं, अपनी झोली फैला दूँगा;
औ’ जन्नत के बदले उससे, यक नया जन्म ही माँगूँगा।
आज अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ के जन्मदिन पर, हम उनकी विरासत को याद करते हैं और उनके बलिदान को सलाम करते हैं।
बाबा की रिपोर्ट—-
